एक मुख़्तसर तआरुफ़
शाम को जन्म होने के कारण पिता जी ने नाम दीपक दे दिया; दीपक त्रिपाठी | उर्दू–शायरी में रुचि और ग़ज़लें कहने के कारण ‘रूहानी’ बतौर तख़ल्लुस इस्तेमाल करने लगा | यही वज्ह है कि मेरे किये कामों में कहीं दीपक त्रिपाठी नाम मिलता है तो कहीं दीपक रूहानी
बचपन में
कक्षा पाँच तक सरकारी और ग़ैर–सरकारी कई स्कूलों में पढ़ाई की I कक्षा छः से इण्टर मीडिएट तक एक अर्धशासकीय इण्टर कॉलेज – ब्रजेन्द्र मणि इण्टर कॉलेज, कोहड़ौर, प्रतापगढ़ में पढ़ाई की I ग्रेजुएट प्रताप बहादुर पी. जी. कॉलेज, सिटी, प्रतापगढ़ से किया I पोस्ट ग्रेजुएट (M. Sc. – Mathematics) साकेत महाविद्यालय अयोध्या से किया I
पढ़ाई-लिखाई
साकेत महाविद्यालय से पोस्ट ग्रेजुएट करने के बाद दुबारा एक अन्य विषय (हिन्दी) से फिर पोस्ट ग्रेजुएट किया और उसके बाद एम. फिल. (अनुवाद प्रौद्योगिकी) करने महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा (महाराष्ट्र) गया; फिर राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय, फ़ैज़ाबाद (उत्तर प्रदेश) से पीएच. डी. की उपाधि प्राप्त की I
कुछ अन्य
यू. जी. सी. (University Grants Commission) द्वारा आयोजित नेट (National Eligibility Test) परीक्षा हिन्दी–विषय से पास की I जामिया अलीगढ़ द्वारा उर्दू माध्यम से हाईस्कूल और इण्टरमीडिएट की परीक्षाएँ उत्तीर्ण की I कुछ कोर्स इन्दिरा गांधी मुक्त विश्वविद्यालय, नई दिल्ली (IGNOU) से अभी कर रहे हूँ I
साहित्य की तरफ़
शिक्षा के क्षेत्र में सक्रिय रहने के साथ–साथ ग्रेजुएट के दौरान से ही महाविद्यालय स्तर की सांस्कृतिक गतिविधियों में सक्रिय रहा I वाद–विवाद प्रतियोगिता, स्व–रचित काव्य प्रतियोगिता आदि में भाग लिया और अक्सर संतोषजनक परिणाम रहे I काव्य–प्रतियोगिताओं में भाग लेने का नतीजा ये हुआ कि शायरी का चस्का ग्रेजुएट में ही लग गया I कवि–सम्मलेन और मुशायरों में भी जाने लगा I आगे चलकर ये शौक़ अपने स्थायी भाव में आ गया – शौक़ हर रंग रक़ीबे–सरो–सामाँ निकला…
साहित्यिक शुरूआत
साहित्य के शुरूआती दिनों में जनपद प्रतापगढ़ के स्वनाम धन्य कवि आद्याप्रसाद ‘उन्मत्त’ जी के शिष्य बना और आज भी उन्हीं के दिखाये–बताये रास्ते पर चल रहा हूँ I उसी रास्ते पर चलने का नतीजा है कि आज तक सस्ती लोकप्रियता के लिए कोई उपक्रम नहीं किया I
लेखन की शुरूआत
शिक्षा–जगत की विधिवत दीक्षा हे. न. बहुगुणा पी. जी. कॉलेज, लालगंज में अध्यापनरत डॉ. दुर्गाप्रसाद ओझा जी से मिली I आदरणीय ओझा जी ने साहित्य और भाषा की व्यावहारिकता से न सिर्फ़ अवगत कराया बल्कि उसके प्रयोगों–अनुप्रयोगों से माँज–माँजकर कुछ लिखने–पढ़ने और बोलने–सुनने लायक़ बनाया I
डॉ. दीपक त्रिपाठी
हिन्दी के असिस्टेंट प्रोफ़ेसर
बिहार लोक सेवा आयोग’ से चयनित होकर अक्टूबर २०१९ से रामकृष्ण कॉलेज, मधुबनी, बिहार के हिन्दी-विभाग में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर हैं I मौलिक रूप से कुछ किताबों के प्रकाशन के अलावा कई पुस्तकों में सह-लेखक रहे हैं और कुछ किताबों में अन्य प्रकार से सहयोग किया है I उर्दू से हिन्दी अनुवाद का लम्बा अनुभव है I किताब और पत्रिकाओं के सम्पादन-कार्य भी किये हैं I पत्र-पत्रिकाओं में लेख-आलेख प्रकाशित होते रहते हैं I
साहित्यिक जीवन के अब तक के सफ़र में जो भी गतिविधियाँ और सक्रियता हैं उनकी एक झलक यहाँ देखी जा सकती है...
समय–समय पर लेखन के विभिन्न क्षेत्रों में सक्रियता रही है I विभिन्न पत्रिकाओं और शोध जर्नल में प्रकाशित लेख–आलेख, शोध–पत्र के साथ ही पुस्तक–सम्पादन और अनुवाद के कामों के बारे में जानने के लिए यहाँ क्लिक करे…..
ग्रेजुएट करने के दौरान ही ग़ज़लें कहने का शौक़ हुआ I समय के साथ और लगातार अदबी महफ़िलों में उठने–बैठने के कारण अच्छी संगत मिलती गयी और ग़ज़ल कहने के तौर–तरीक़ों का कुछ शऊर आता गया I ग़ज़लें पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें…
Milestone
- 2016 - Milestone 1
- 2015 - Milestone 2
- 2013 - Milestone 3
Awards
- 2020 - Award 1
- 2016 - Award 2
- 2015 - Award 3
ग़ज़लकार’
ग़ज़ल की छमाही पत्रिका