भाषा-नाम के आधार :
हिन्दी-भाषा और साहित्य के आपसी मेलजोल और सामंजस्य का प्रस्थान-बिन्दु निर्धारित करने के लिए हमें अमीर ख़ुसरो से ही बहस को शुरू करना पड़ता है। यहाँ हिन्दी-साहित्य के आदिकाल को उपेक्षित करते हुए अमीर ख़ुसरो को प्रस्थान-बिन्दु इसलिए माना जा रहा है, क्योंकि मौजूदा हिन्दी-भाषा जितना अमीर ख़ुसरो की भाषा के निकट है उतना किसी आदिकालीन कवि की भाषा के निकट नहीं है। हिन्दी-उर्दू के प्रारम्भिक बीजारोपण को समझने के लिए तथा अरबी-फ़ारसी और स्थानीय बोलियों के आपसी समन्वय की गुत्थियों को समझने के लिए यहाँ सुनीति कुमार चाटुर्ज्या का एक लम्बा पुस्तक-अंश उद्धृत किया जा रहा है, जिससे बहुत कुछ स्पष्ट हो जायेगा— ‘‘अब हम पुनः दिल्ली एवं उसके आसपास विकसित होनेवाली भाषा के मूल विषय पर आते हैं। इसके मूल नाम उस समय ‘हिन्दी’ और ‘हिन्दवी’ थे। कभी-कभी स्पष्ट रूप से बतलाने के लिए इसे ‘देहलवी’ (दिल्ली की भाषा) भी कहा जाता था। भारतीय मुस्लिम साहित्य के एक महान लेखक तथा अपनी फ़ारसी कविताओं की श्रेष्ठता के कारण फ़ारसी के उच्चतम कोटि के कवियों एवं विद्वज्जनों में गिने जाते अमीर ख़ुसरो (1253-1325) इस ‘हिन्दवी’ में लिखना आरम्भ करनेवाले प्रथम गणमान्य लेखक माने जाते हैं। अमीर ख़ुसरो इस भाषा को बहुत अच्छी तरह जानते थे और उन्हें अपनी हिन्दवी भाषा एवं उसकी उच्च साहित्यिक संस्कृति का अभिमान था। (इस प्रकार वे तत्कालीन बोलचाल की हिन्दुस्थानी साहित्यिक बोली ब्रजभाषा, प्राचीन अपभ्रंश तथा सम्भवतः संस्कृत को भी एकत्रित